Khatu Shyam Temple में चढ़ने वाला सबसे पहले और प्रसिद्ध निशान सूरजगढ़ निशान है। जो झुंझुनू जिले के सूरजगढ़ शहर से आता है इस निशान को चढ़ाने में एक विशेष परंपरा है और इसका महत्व काफी अनोखा है। विक्रम संवत 1752 में अमरचंद पुजारी के परिवार ने इस परंपरा की शुरुआत की थी तब से लेकर आज तक यह निशान खाटू श्याम जी के प्रति श्रद्धा भक्ति और समर्पण का आदित्य प्रतीक बना हुआ है। इस लेख में हम सूरजगढ़ के इस पावन निशान के इतिहास, परंपरा, और महत्व पर विस्तार से चर्चा करते हैं।
खाटू श्याम जी मंदिर में क्यों सबसे पहले चढ़ता है सूरजगढ़ का निशान
सूरजगढ़ का निशान सबसे पहले चढ़ाए जाने के पीछे का कारण बाबा श्याम के प्रति गहरी आस्था और निष्ठा है यह केवल एक ध्वज नहीं बल्कि सांस्कृतिक धरोहर और विश्वास का प्रतीक है इस निशान के माध्यम से भक्त अपनी श्रद्धा को व्यक्त करते हैं। और खाटू श्याम जी की कृपा और आशीर्वाद की प्राप्ति करते हैं हर साल मेले के दौरान इस निशान को सबसे पहले चढ़ने का महत्व विशेष रूप से माना जाता है क्योंकि अंग्रेजों के शासन के समय Khatu Shyam Temple पर ताला लगा दिया गया था और यही निशां था जिसने मोर छड़ी द्वारा इस ताले को तोड़ा था तब से लेकर अब तक यही निशान सबसे पहले चढ़ाया जाता है।
खाटू श्याम जी मंदिर में सूरजगढ़ के निशान का इतिहास
सूरजगढ़ का निशान खाटू श्याम जी मंदिर में चढ़ने वाला ध्वज होता है। इसका इतिहास विक्रम संवत 1752 से आरंभ हुआ जब अमरचंद पुजारी के परिवार ने इसे स्थापित किया। यह सिर्फ एक धार्मिक प्रतीक नहीं बल्कि इसमें भक्त मंगलाराम की अद्भुत कहानी छिपी हुई है मानता है कि जब अंग्रेजों ने खाटू श्याम मंदिर में ताला लगा दिया था तब भक्त मंगलाराम ने अपने गुरु गोवर्धन दास के आदेश पर मोर पंख के साथ खाटू पहुंचे और बाबा श्याम का नाम लेकर मोर पंख ताला तोड़ दिया। इस आदित्य ने अंग्रेजों को भी पीछे हटने पर मजबूर कर दिया।
खाटू श्याम मंदिर में चढ़ने वाला सूरजगढ़ निशान कैसा होता है
खाटू श्याम जी का ध्वज केसरिया, नारंगी, और लाल रंगों का होता है जिस पर कृष्ण और श्याम बाबा के चित्र और मंत्र अंकित होते हैं कुछ निशाने पर नारियल और मोर पंख भी होते हैं। माना जाता है कि इस निशान को चढ़ाने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। इस ध्वज की विशेष पूजा अर्चना के बाद भक्त इसे इस से खाटू लेकर जाते हैं और पूरी यात्रा के दौरान इसे अपने हाथ में रखते हैं आधुनिक समय में भक्ति सोने चांद के बने निशान भी अर्पित करते हैं जो बाबा के प्रति उनकी श्रद्धा का प्रतीक है
खाटू श्याम जी मंदिर का सूरजगढ़ निशान से खास रिश्ता
सूरजगढ़ और खाटू श्याम मंदिर का रिश्ता बेहद गहरा है चाहे मुगलों का समय रहा हो या अंग्रेजों का सूरजगढ़ के भक्तों ने हमेशा मंदिर और दर्शनों की रक्षा की है। जब-जब मंदिर पर हमले हुए सूरजगढ़ के भक्तों ने अपनी भक्ति और साहस का परिचय दिया और बाबा श्याम की कृपा से मंदिर को सुरक्षित रखा।
सूरजगढ़ निशान यात्रा में महिलाओं का योगदान
सूरजगढ़ के निशान यात्रा में महिलाएं अपनी मनोकामना पूरी होने पर बाबा को सिगड़ी अर्पित करती हैं वह अपने सिर पर सिगड़ी रखकर 152 किलोमीटर की पदयात्रा करती हैं। पूरे रास्ते में श्रद्धा भाव से नाचते गाते बाबा के भजनों का आनंद लेती है और बाबा के दरबार में सिगड़ी अर्पित करती हैं यह परंपरा केवल सूरजगढ़ के निशान के साथ ही देखी और इसे बाबा श्याम के प्रति आस्था का प्रतीक माना जाता है।
सूरजगढ़ निशान यात्रा समय
सूरजगढ़ का निशान हर साल फागुन शुक्ल छट और सप्तमी के दिन सूरजगढ़ से खाटू श्याम जी की यात्रा के लिए रवाना होता है। और द्वादशी के दिन खाटू श्याम जी के मंदिर के शिखर पर चढ़ाया जाता है यह परंपरा केवल सूरजगढ़ के निशान के लिए ही है और अन्य किसी ध्वज को यह सम्मान नहीं मिलता। यही कारण है कि हर साल में केवल भारत से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी श्याम भक्त इस निशान यात्रा में शामिल होते हैं।
निष्कर्ष
सूरजगढ़ का निशान खाटू श्याम जी के प्रति भक्ति आस्था और समर्पण का प्रतीक है यह ध्वज ने केवल ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। बल्कि इसके पीछे भक्तों का गहरा विश्वास और सांस्कृतिक धरोहर भी जुड़ा हुआ है सूरजगढ़ के इस निशान की पवित्रता और विशिष्ट इसे खाटू श्याम जी के दरबार में विशेष स्थान प्रदान करती है। और इस यात्रा में शामिल हर भक्त को बाबा का आशीर्वाद प्राप्त होता है।