Khatu Shyam Temple ka Rahasya यह है कि खाटू श्याम को कलयुग में श्री कृष्ण का अवतार माना गया है। और उनके प्रति लोगों की गहरी श्रद्धा समय के साथ और भी बढ़ती जा रही है। ऐसा विश्वास है कि उनके दर्शन मात्र से भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं इसलिए उन्हें हारे का सहारा कहा जाता है।
भारत में हजारों प्राचीन मंदिर हैं और हर मंदिर का निर्माण किसी विशेष रहस्यमई कथा या धार्मिक मान्यता से जुड़ा होता है राजस्थान के सीकर जिले में स्थित Khatu Shyam Temple भी एक ऐसा ही अद्भुत और चमत्कारी स्थान है जो अपनी आध्यात्मिक मेहता और चमत्कारी प्रभाव के लिए प्रसिद्ध है। देश भर से लाखों श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं यह मानते हुए की खाटू श्याम जी के दर्शन से उनकी सभी समस्याओं का समाधान और जीवन में सुख समृद्धि का आगमन होता है।
Khatu Shyam Birthday Date 2024
Khatu Shyam Birthday हर वर्ष कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। जिसे देवउठानी एकादशी या प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है यह पर्व भगवान विष्णु के चार महीने के शयन के बाद जागने का प्रतीक होता है। इसलिए इसे देव जागरण का पर्व भी कहा जाता है। इस वर्ष 2024 में खाटू श्याम जी का जन्मदिन 12 नवंबर को मनाया जाएगा। इस दिन देश-विदेश से श्याम भक्त खाटू धाम में एकत्र होते हैं। और भाव उत्सव मनाते हैं भजन कीर्तन और प्रसाद वितरण के माध्यम से भक्तजन अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं और इस पावन पर्व का आनंद लेते हैं।
खाटू श्याम जी के माता-पिता का क्या नाम है
खाटू श्याम जी जिन्हें कलयुग के भगवान का दर्जा प्राप्त है उनके पिता घटोत्कच और माता मोरवी थी। घटोत्कच महाभारत के प्रमुख योद्धा भीम के पुत्र थे। इसी महान वंश में वीर बर्बरीक का जन्म हुआ जिन्हें आज भक्तजन खाटू श्याम जी के रूप में आस्था और भक्ति से पूछते हैं।
बर्बरीक का नाम खाटू श्याम जी क्यों पड़ा
बर्बरीक का नाम खाटू श्याम जी कैसे पड़ा, इसके पीछे एक अद्भुत कथा है महाभारत युद्ध में जब बर्बरीक ने भगवान कृष्ण को अपने तीन बाणो की शक्ति के बारे में बताया तो श्री कृष्णा उनकी शक्ति और समर्पण से प्रभावित हुए कृष्ण को यह समझ आया कि बर्बरीक की अद्भुत शक्ति के कारण युद्ध का परिणाम बदल सकता है उन्होंने बर्बरीक से उनका शीश मांग कर युद्ध को संतुलन में रखा।
इसके बाद बर्बरीक ने अपने शीश का दान किया और यह अनुरोध किया कि उन्हें युद्ध देखने का अवसर मिले। श्री कृष्ण ने उनका सर युद्ध भूमि पर स्थापित एक बड़े वृक्ष के ऊपर कर दिया था जिससे व वह साक्षी बन सके महाभारत के बाद जब पांडवों ने युद्ध की जीत का श्रेय जानना चाहा तब बर्बरीक ने स्पष्ट किया की विजय का सारा श्रेय केवल श्री कृष्ण को जाता है क्योंकि युद्ध की हर रणनीति उन्हीं की थी।
कृष्ण ने बर्बरीक की महानता और भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया कि कलयुग में वह श्याम नाम से पूजे जाएंगे। राजस्थान में के खाटू गांव में उनके शीश का पवित्र स्थान बनाकर उनकी पूजा आरंभ हुई और बर्बरीक खाटू श्याम जी के रूप में प्रसिद्ध हुए जो कलयुग में अपने भक्तों की इच्छाएं पूर्ण करते हैं।
खाटू श्याम जी किसके अवतार हैं
खाटू श्याम बाबा भगवान श्री कृष्ण के अवतार है। वह वीर बर्बरीक के रूप में पूजे जाते हैं जो घटोत्कच और माता मोरवी के पुत्र थे। बर्बरीक का जन्म महाभारत के समय हुआ और उनकी आदित्य शक्तियों के कारण उन्हें कलयुग में श्री कृष्ण का रूप माना जाता है। भक्त उन्हें हारे का सहारा और संकट मोचन के रूप में पूजते हैं जो अपने भक्तों क की इच्छा को पूरा करते हैं।
खाटू श्याम बाबा के सबसे पहले कौन सा निशान चढ़ता है
खाटू श्याम जी पर सबसे पहले सूरजगढ़ का निशान चढ़ाया जाता है। यह निशान विशेष महत्व रखता है और इसकी परंपरा विक्रमी संवत 1752 से चली आ रही है सूरजगढ़ के भक्तों ने इसे सबसे पहले चढ़ने की परंपरा स्थापित की जो बाबा की कृपा और आशीर्वाद का प्रतीक माना जाता है।
सुरजगढ़ का निशान क्यों सबसे पहले चढ़ाया जाता है
राजस्थान के सीकर जिले के खाटू गांव में स्थित खाटू श्याम जी के मंदिर पर विशेष रूप से सूरजगढ़ का निशान चढ़ाया जाता है। खाटू श्याम जी के मेले में लाखों श्रद्धालु निशान अर्पित करते हैं लेकिन सूरजगढ़ का निशान विशेष महत्व रखता है यह निशान साल भर तक बाबा के शिखर पर लहराता है। और इसकी पूजा अर्चना के पीछे एक दिलचस्प कथा है।
सूरजगढ़ का निशान खाटू श्याम जी में सबसे पहले चढ़ाया जाता है और इसकी परंपरा विक्रम संवत 1752 में शुरू हुई थी यह परंपरा अमरचंद भोजराज का परिवार द्वारा स्थापित की गई थी। नागेंद्र भोजराज के अनुसार एक समय अंग्रेजों के शासन में श्याम बाबा के मंदिर को ताला लगा दिया गया था। उस समय सूरजगढ़ से निशान लेकर पहुंचे भक्त मंगलाराम ने मोर पंख की सहायता से ताला तोड़ दिया जिससे यह निशान विशेष मान्यता प्राप्त कर गया तब से लेकर अब तक केवल सूरजगढ़ का निशान ही बाबा के मंदिर के शिखर पर चढ़ता है।