Khatu Shyam Temple: खाटू श्याम मंदिर की संपूर्ण जानकारी

Khatu Shyam Temple हिंदू धर्म का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है, जहां भक्त गण बर्बरीक को खाटू श्याम बाबा के रूप में पूजते हैं। यह मंदिर खाटू गांव में स्थित है। और भक्तों की मान्यता है कि यहां श्याम बाबा का असली शीश श्याम कुंड में मिला था है। श्याम बाबा महाभारत के महान योद्धा माने जाते हैं जिन्होंने कुरुक्षेत्र के युद्ध में श्री कृष्ण के आदेश पर अपने शीश का दान गुरु दक्षिणा के रूप में दिया था। इस बलिदान के कारण उन्हें ”शीश का दानी’‘ कहा जाता है। श्री कृष्ण ने बर्बरीक को यह वरदान दिया कि कलयुग में उन्हें श्याम नाम से पूजा जाएगा और खाटू गांव में उनकी प्रतिष्ठा होगी।

महाभारत युद्ध के दौरान खाटू श्याम जी ने देखा कि पांडवों की विजय केवल श्री कृष्ण की नीति और मार्गदर्शन से संभव हुई है युद्ध समाप्त होने पर श्री कृष्ण ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि कलयुग में वह खाटू गांव के नाम मे विख्यात होंगे इसी के चलते बर्बरीक का नाम खाटू श्याम के रूप में पूजनीय हो गया। और आज उन्हें शीश का दानी के रूप में जाना जाता है भक्तजन श्रद्धा और भक्ति के साथ खाटू श्याम जी की पूजा करते ।हैं और अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए मंदिर आते हैं जिससे उनका जीवन सुख शांति और समृद्धि से परिपूर्ण हो जाता है।

khatu Shyam Temple

Khatu Shyam Temple Rajasthan

राजस्थान के सीकर जिले में स्थित खाटू गांव का Khatu Shyam Temple भगवान श्री कृष्ण के अवतार बर्बरीक को समर्पित है। जिन्हें भक्त खाटू श्याम जी के नाम से पूजते हैं। बर्बरीक महाभारत काल के एक वीर योद्धा थे जिनकी वीरता के किस्से महाभारत में प्रसिद्ध है। श्री कृष्ण के आशीर्वाद से बर्बरीक को कलयुग में पूजनीय माना गया। और आज खाटू श्याम बाबा के रूप में उनकी उपासना होती है।

Khatu Shyam Temple में हर वर्ष लाखों श्रद्धालु इस पावन धाम में दर्शन के लिए आते हैं क्योंकि ऐसा विश्वास है कि सच्चे मन से यहां मांगी गई हर प्रार्थना अवश्य पूरी होती है। खाटू श्याम बाबा को शीश का दानी कहा जाता है क्योंकि उन्होंने अपने शीश का दान भगवान श्री कृष्ण को दिया था। भक्तगण उनके शरण में आकर अपने जीवन में सुख और समृद्धि प्राप्त करते हैं।

बर्बरीक- असल में खाटू श्याम बाबा महाभारत के वीर योद्धा बर्बरीक ही है बर्बरीक असीम शक्तियों के दानी थे और महाभारत के युद्ध की दिशा को बदलने में सक्षम थे उन्होंने शीश का दान का बलिदान को भक्ति के कारण दिया। खाटू श्याम बाबा के रूप में पूजे जाते हैं जिनकी महिमा अनंत है।

Khatu Shyam Temple Rajasthan

Khatu Shyam Temple Timing

Khatu Shyam Temple में दर्शन और आरती का समय सर्दियों और गर्मियों के मौसम के अनुसार अलग-अलग तय किया गया है। यह समय भक्तों की सुविधा और मौसम के अनुसार मंदिर के समय में बदलाव के कारण किया जाता है। यह समय विशेष अवसरों के लिए भी लागू हो सकता है हालांकि आम दिनों में खाटू श्याम बाबा के दर्शन किसी भी समय किए जा सकते हैं क्योंकि बाबा का दरबार भक्तों के लिए सदैव खुला रहता है।

सर्दियों में: मंदिर सुबह 5:30 बजे खुलता है और दोपहर 1:00 बजे बंद होता है। शाम को यह फिर से 5:00 बजे खुलता है और रात 9:00 बजे तक खुला रहता है।

गर्मियों में: मंदिर सुबह 4:30 बजे से दोपहर 12:30 बजे तक खुला रहता है। शाम को यह 4:00 बजे से रात 10:00 बजे तक दर्शन के लिए खुला रहता है।

Khatu Shyam Temple आरती का समय

इस समय सारणी के अनुसार भक्तगण अपनी सुविधा अनुसार Khatu Shyam Temple मे दर्शन और आरती में शामिल हो सकते हैं।

समय सर्दीगर्मी
दर्शन समय सुबह 5:30 – 1:00सुबह 4:30 – 12-30
शाम 4:00शाम 10:00
मंगला आरती सुबह 5:30सुबह 4:30
श्रृंगार आरती सुबह 8:00सुबह 7:00
भोग आरतीदोपहर 12:30 दोपहर 12:30
संध्या आरतीशाम 6:30शाम 7:30
शयन आरतीरात 8:30रात 9:30
Khatu Shyam Temple History

खाटू श्याम जी का नाम पहले बर्बरीक था वह भीम और नाग कन्या मोरबी घटोत्कच के पुत्र थे और बचपन से ही वीर योद्धा बनने के गुण रखते थे। युद्ध की कला उन्होंने अपनी मां और श्री कृष्ण से सीखी थी बर्बरीक ने भगवान शिव की घोर तपस्या करके तीन विशेष बाद प्राप्त किया जो तीनों लोकों में विजय दिलाने के लिए पर्याप्त थे तभी उनको तीन बाण के धारी कहा जाता है।

तीन बाण के धारी – खाटू श्याम जी के पास तीन शक्तिशाली बाण थे जो किसी भी युद्ध का परिणाम बदलने की क्षमता रखते थे। उनके बारे में कहा जाता था कि वह सिर्फ तीन बाण से महाभारत का युद्ध समाप्त कर सकते हैं।

Khatu Shyam Temple की उत्पत्ति से जुड़ी एक सच्ची घटना है कि जब महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ तो श्री कृष्ण ने बर्बरीक का शीश रूपवती नदी में प्रवाहित कर दिया। जो बाद में खाटू की भूमि में जाकर स्थान प्राप्त किया और मिट्टी से ढक गया। वर्षों बाद कलयुग में एक दिन एक गाय उस स्थान पर पहुंची और अचानक उसके थन से दूध बहने लगा। ग्रामीणों ने हैरान होकर उसे जगह को खुदवाया और बर्बरीक का शीश मिला। जहां बर्बरीक का शीश मिला उस स्थान को श्याम कुंड के नाम से जाना गया। यह घटना लोगों के लिए एक चमत्कारी संकेत बना और तब से खाटू श्याम जी की पूजा शुरू हुई।

मूल निर्माण: 1027 ईस्वी में रूप सिंह चौहान और उनकी पत्नी नर्मदा कंवर ने मंदिर का निर्माण करवाया था।

पुनर्निर्माण: 1720 ईस्वी में मारवाड़ के शासक ठाकुर के दीवान अभय सिंह ने मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था।

Khatu Shyam Kund

Khatu Shyam Kund श्याम मंदिर के पास स्थित एक पवित्र तालाब है यह स्थान धार्मिक रूप से बहुत महत्व रखता है कहा जाता है कि यही भगवान बर्बरीक जिन्हें खाटू श्याम के रूप में पूजा जाता है उनका शीश श्याम कुंड में ही मिला था। इस तालाब को पवित्र माना जाता है और यह स्नान करने से भक्त अपन अपने पापों से मुक्त हो जाते हैं। श्याम कुंड में डुबकी लगाने से लोगों को शारीरिक और मानसिक शुद्धता मिलती है और यह स्नान स्थान श्रद्धालुओं के लिए एक आस्था का केंद्र बन गया है।

खाटू श्याम बाबा की कथा

महाभारत युद्ध के बाद पांडव अपनी वीरता की प्रशंसा सुनने के इच्छुक थे वह अपनी-अपनी भूमिका को महत्वपूर्ण मानते हुए अपनी वीरता का बखान करने लगे। अर्जुन ने अपने धनुष कौशल की तारीफ की भीम ने अपनी शक्ति का वर्णन किया और युधिष्ठिर ने अपनी धर्म निष्ठा का उल्लेख किया। लेकिन जब श्याम बाबा से उनकी राय पूछी गई तो उन्होंने पांडवों की कमजोरी को उजागर करते हुए यह स्पष्ट किया की महाभारत की असली विजय श्री कृष्ण की चतुराई और नीतियों का परिणाम थी।

Khatu shyam Birthday

खाटू श्याम बाबा का महाभारत में योगदान

श्याम बाबा जी ने महाभारत के एक महान योद्धा के रूप में जाना जाता है उनकी वीरता से जुड़ी कई कहानियां प्रचलित है। जब महाभारत का युद्ध हुआ तब भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक के शिष्य को जीवित रखा। ताकि वह इस महाभारत को देख सके यह युद्ध 18 दिनों तक चला और इस भीषण संग्राम में केवल 10 लोग ही जीवित बचे।

युद्ध के समाप्त होने के बाद भगवान श्री कृष्ण ने पांडवों की विजय के संदर्भ में श्याम बाबा से पूछा की असली विजेता कौन है इस पर श्याम बाबा ने स्पष्ट किया की महाभारत के युद्ध का असली विजेता स्वयं श्री कृष्णा है जिनकी चतुराई और रणनीतियां ने इस युद्ध में विजय दिलाई है।

इस प्रकार श्याम बाबा ने यह सिद्ध कर दिया कि युद्ध की सफलता में केवल वीरता नहीं बल्कि बुद्धिमत्ता और सही दिशा भी महत्वपूर्ण होती है।

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