Khatu Shyam Ji Nishan यात्रा हर साल लाखों भक्त खाटू श्याम जी के मेले में आते हैं और अपनी श्रद्धा भाव को श्याम बाबा के चरणों में अर्पित करते हैं। यह मेला जो मुख्यतः फाल्गुन एकादशी के दिन आयोजित होता है भक्तों के लिए भक्ति आस्था और आनंद का संगम होता है। इस लेख में हम खाटू श्याम जी के महोत्सव, निशान यात्रा, रथ यात्रा, महिमा, और सूरजगढ़ के निशान की विशिष्ट परंपरा के बारे में जानेंगे।
खाटू श्याम जी निशान यात्रा
फाल्गुन मेले में निशान यात्रा का विशेष महत्व है यह एक पदयात्रा है जिसमें भक्त अपने हाथों में श्याम ध्वज (निशान) लेकर Khatu Shyam Temple तक जाते हैं। मुख्यतः यह यात्रा रिंगस से खाटू श्याम तक की जाती है। जो लगभग 18 किलोमीटर है श्रद्धालु अपनी आस्था के आधार पर इस यात्रा को जयपुर, दिल्ली, कोलकाता, या अपने घरों से भी प्रारंभ करते हैं। यह मानता है कि पैदल निशान यात्रा करके श्याम बाबा को निशान चढ़ाने से उनकी कृपा प्राप्त होती है और भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
खाटू श्याम जी का फाल्गुन मेला भक्ति का प्रमुख आयोजन
फाल्गुन एकादशी जिसे श्याम बाबा का बलिदान दिवस माना जाता है खाटू श्याम जी का सबसे बड़ा मेला फाल्गुन एकादशी को लगता है। यह मेल अष्टमी से द्वादशी तक 5 दिनों तक चलता था लेकिन भक्तों की संख्या को देखते हुए अब इसे 9 से 10 दिन तक आयोजित किया जाने लगा। देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु अपने परिवार और मित्रों के साथ बाबा के दर्शन करने आते हैं श्याम भजन गायक भी देश भर से इस मेले में आते हैं और हर धर्मशाला में संध्या के समय भोजन के जरिए बाबा के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं।
Khatu Shyam Ji में सूरजगढ़ का निशान
Khatu Shyam Temple मंदिर पर सबसे पहले सूरजगढ़ का निशान चढ़ाया जाता है। इस निशान की परंपरा विक्रम संवत 1752 से चली आ रही है। जब अमरचंद पुजारी परिवार ने इसे स्थापित किया था। इसे विशेष महत्व दिया गया है क्योंकि यह खाटू श्याम जी के सूरजगढ़ के भक्तों की गहरी आस्था और समर्पण को दर्शाता है। एक अद्भुत कथा के अनुसार सूरजगढ़ के भक्त मंगलाराम ने मोर पंख से मंदिर का ताला तोड़कर इस निशान को स्थापित किया था। इस निशान के आगे आगे महिलाएं अपनी मनोकामनाएं लेकर सर पर सिगड़ी रखकर चलती हैं माना जाता है कि बाबा श्याम जी का आशीर्वाद पाने के लिए यह एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है।
सूरजगढ़ निशान यात्रा का इतिहास
सूरजगढ़ निशान के साथ कई ऐतिहासिक और रहस्यमई घटनाएं जुड़ी हुई है एक समय अंग्रेजों ने मंदिर में ताला लगा दिया था और पूजा अर्चना को बंद करवा दिया था लेकिन सूरजगढ़ के भक्त मंगलाराम ने बाबा के प्रति अपनी आस्था से इस चुनौती का सामना किया और मंदिर का ताला मोर पंख से तोड़कर पूजा को पुन प्रारंभ करवाया। आज भी सूरजगढ़ का निशान विशेष सम्मान के साथ मंदिर के शिखर पर वर्ष भर लहराता है और इसे विशेष मान्यता दी जाती है।
खाटू श्याम जी की रथयात्रा महिमा
फाल्गुन एकादशी के दिन दोपहर 11:00 बजे रथ यात्रा प्रारंभ होती है। रथ में श्याम प्रभु की प्रतिमा नीले घोड़े पर विराजमान होती है। यह शोभा यात्रा मंदिर से प्रारंभ होकर श्याम कुंड तक जाती है जहां शाम बाबा का अभिषेक होता है। इसके बाद यह शोभा यात्रा पंचायती धर्मशाला गणेश दास जी मंदिर के चौराहे और मुख्य बाजार में जाती है। माना जाता है कि इस दिन बाबा स्वयं अपने भक्तों से मिलने के लिए मंदिर से बाहर आते हैं और भक्त अपने घरों की छतों से बाबा का स्वागत करते हैं।
खाटू श्याम जी के निशान यात्रा का महत्व
खाटू श्याम जी के निशान यात्रा के दौरान भक्त नंगे पांव चलकर खाटू श्याम जी के मंदिर तक पहुंचाते हैं और वहां निशान चढ़ाते हैं। मान्यता है कि इस यात्रा से सभी मनोकामनाएं पूरी होती है और जीवन मैं सुख शांति और समृद्धि आती है। निशान को मंदिर में चढ़ने से पहले इसकी विशेष पूजा अर्चना की जाती है और यात्रा के दौरान भक्त इसे अपने हाथ में ही रखते हैं।
निष्कर्ष
खाटू श्याम जी का मेला निशान यात्रा रथ यात्रा और सूरजगढ़ का निशान सभी श्रद्धालुओं के लिए भक्ति और आस्था के प्रतीक है यह न केवल एक धार्मिक आयोजन है बल्कि इस सांस्कृतिक धरोहर भी माना जाता है। इस यात्रा के माध्यम से भक्त अपने श्रद्धा भाव और विश्वास को श्याम बाबा के चरणों में समर्पित करते हैं और खाटू श्याम जी से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।